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________________ - - प्रवचनसार कणिका.. बहन ने भाई को देखा और अश्रु आ गये। राजाकी • नजर इस रानी की अश्रुभीजी चक्षुओं की तरफ एकाएक • जाने से राजा शंकाशील बना । विचित्र घटना बन गई। राजा मन में विचार करने लगा कि वह साधु मेरी · पत्नी का पूर्व स्नेही होना चाहिये। इसीलिये रानी की · आँख में से आंसू आये। शंका के आवेश में क्रोधार बन गये। राजा ने .. • सेवकों को आज्ञा की उस सांघु की जिन्दा चमड़ी उतारो। राजा की आज्ञा का अमल करने के लिये सेवक छूटे। वे :: कहने लगे कि : "अम ठाकुरनी ए छे आणा, खाल उतारी लाओ" . यह शब्द सुन के महात्मा विचार करने लगे कि: . "कर्म खपाववानो एवो अवसर फरीने क्यारे मलसे" खाल उतारने को आये लेवकों से ये धैर्यवन्त नुनि - कहने लगे कि हे भाई! तुम्हें खाल उतारने में सगवड (सरलता-अनुकूलता) रहे। मैं इस तरह से खड़ा रहता हूँ तुम संकोच नहीं करों। .... वाहरे मुनि ! कैसी अनुपम शान्ति । वाह रे मुनि । कैसी अनुपम शान्ति। शरीर में एक छोटी सी -सुई चुसे तो भी मनुष्य • चीसाचीस-पाड़ने लगता है (चिल्लाने लगता हैं)। तो • यहां तो पूरे शरीर की खाल उतारी जा रही थी: : - सहनशीलता की हद है? देह और आत्मा को भिन्न जानने वाले खंधक सुनि एक के बाद एक विकास के सोपान पर चढ़ने लगे। मृत्यु मंगलकारी बन गया। ओधा - और सुहपत्तीवस्त्र खून में रंग गये।
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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