SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 415
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६५. व्याख्यान-अट्ठाईसवाँ . . : . बारह महीना तक तीर्थकर एसा दान देते हैं कि लेने वाला एसा बोले कि ये तो दान गंगा थाई है। : . .... आज मानव कल्याण की बातें करने वालों के हाथः से ही मानव का कितना नुकशान हो रहा है। इसकी. तुम्हें खबर है? आज मानव सुख की योजना बनाने वालों के हाथ. से प्रायः कर मानवों को दुःख वहुत होता है। ... . जिसे देवलोक के सुख तुच्छ लगते हैं। उसे मानव लोक के सुख तुच्छ लगें इसमें आश्चर्य की बात नहीं है। परमात्मा की हार्दिक भक्ति अपनने नहीं. की इसी . लिये अपना उद्धार नहीं हुआ। .. ... .... तीर्थंकर परमात्मा का जन्म होने के साथ हो. देवों के विमान डोल उठते हैं। क्योंकि तीर्थंकरों की पुन्याई महान होती है। . ...... ...: ... . ... ... ... .... नजर से देख लेने पर भी सच्ची वात की. खात्री नहीं करें तवतक निर्णय नहीं किया जा सकता है। जो करने में आवे तो महा अनर्थ हो जाता है। खंधक मुनिः के जीवन में भी एसा ही बना है। . . . - प्रसंग एसा बनता है कि खंधक मुनि एक समय गोचरी को गये। . उनकी तपश्चर्या घोर थी। छह के पारणे छ? और अट्टम के पारणे अट्टम और मास क्षमणं के पारणे मास क्षमण। घोर उपसर्गों में भी ये आनंद मना सकते थे। - खंधक मुनि विहार करते. करते एक समय जिस शहर में आये उस शहर के रानी राजा उनको संसारी - वहन वहनोई थे। राजा रानी सोगठे (चौसर) खेलते थे ' इतने में ये मुनि वहां से निकले। .:. : ... ... ...
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy