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________________ ३६८ प्रवचनसार कर्णिको .. %3 - . जो पुत्री कहती कि हे पिताजी ! मुझे रानी बनना है तो उसे भेजते थे प्रभु नेमिनाथ भगवान के पास दीक्षा लेने को। अपनी संतान की हितलागणी उनको कितनी थी? तुम्हें भी अपनी संतान की एसी हितभावना है ? ' धर्मीक घरमें धन भोग और संसार के झगड़े नहीं . होते लेकिन धर्म, तप और त्यागके झगड़े होते हैं । . तुम्हारे घरमें किसके झगड़े हैं। आवश्यकः सूत्रों के अर्थका ज्ञान कितनों को है ? जगचिन्तामणि सूत्र में क्या आता है ? सुबह प्रतिक्रम में बोलते हो?.. __पोषध करते हो तव भी बोलते हो। लेकिन इनमें क्या आता है । ये तुम्हे खवर नहीं है। ... : सूत्र के अर्थ को समझे विना सूत्र बोल जाते हो इसमें शायद लाभ मिल भी जाय लेकिन मनमाना नहीं । .. जग चिन्तामणी में तमाम शास्वत चैत्यों की गणना की है। उनको नमस्कार करने की योजना हैं । भरत क्षेत्र के आए हुए तीर्थों के नाम देके वहाँ रहे जिन विम्वों को नमस्कार करने में आया है। देखो ! उसका अर्थ इस प्रकार है :- "जग चिंतामणी जग नाह; जग गुरू जग रक्खण । : जग बन्धव जग सथ्थ वाह, . .. . "जग भाव विअख्खण । अट्ठावय संठविय, रुव कम्मट्ट - विणासण । चउविसंपि जिणवर जयंतु अप्पडिहय सासण।" - भव्य जीवों को चिंतामणी रत्न समान, निकट भत्य जीवों के नाथ, समस्त लोक के हितो. पदेशक, छः काय इस प्रकार चितामा जग विस्म
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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