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________________ व्याख्यान - सत्ताईसवाँ ३५९ किसी मित्रका जीव नरकमें गया हो तो उसे शान्त करने के लिये, वैर हठाने के लिये जा सकते हैं । रावण और लक्ष्मण वैरके योगसे नरक में लड़ते होनेसे सीताजीनें चारहवें देवलोक से वहाँ जाके उनको शांत किये थे । . देव मानवलोक में दो कारण से आते हैं। मित्रोंको मदद करने के लिये और दुश्मनों को हैरान करनेके लिये देव मूल स्वरूपमें कहीं नहीं जाते । तिच्छलोक में उनकी गतिका विषय असंख्यात द्वीप समुद्र तक होता है । भगवान के पांचों कल्याणकों में देव नन्दीश्वर द्वीपमें जाके महा महोत्सव पूर्वक कल्याणक की उजवणी करते हैं । . - भगवान महावीर को संगम देवने एक रातमें वीस उपसर्ग किये । उपसर्ग करके जब संगम जीनेको तैयार होता है तब भगवान महावीरने कहाकि हे संगम! अभी भी शक्ति वापरके उपसर्ग कर कि जिससे मेरे कर्म दूर · हों । तव संगमने कहा कि भगवन् ! अब मुझमें शक्ति नहीं है। ऐसा कहके जाता है तब भगवान की आँख में से आँसू आ गई । " कृतापराधेऽपि जने कृपामंथरतारयोः इषद् वाष्पादयो भद्रं श्री वीरजिन नेत्रयोः ॥ भगवानने विचार किया कि हमारा समागम पाके: भी यह विचारा संगम डूब जाता है। कर्म बांधके जाता है । भावदया बढ़ गई और आँख में आँसू आ गए । धनगिरिजी की बात प्रसिद्ध है, उनके पुत्र व्रजस्वामी. कि जिन्होंने शासन के महान कार्य किये हैं उनकी थोड़ी वात करें । पुन्यशाली एसे वालक का जन्म हुआ । परभव की
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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