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________________ - - - - ३५८ प्रवचनसार कर्णिका . शेकने जब चौथी वह ले दाना पीछे लौटाने को कहा तव उसने कहा कि ये दाना तो इतने अधिक बढ गये हैं। कि उनको यहां लाने के लिये तो बहुत से गाडे भेजने पड़ेगे। शेठके पूछने ले उसने दाना का उत्तरोत्तर वावेतर (खेतमें वोनेकी) करने की हकीकत कही। इतनी विधि पूरी होने के बाद शेठने अपनी चारों पुत्र वधुओंसे पूछा कि तुम लव हमारे घरका भला चाहनेवाली हों तो तुम्ही कहो कि इन चारों में से किसको क्या काम सोपं । तव सव कहने लगी कि आपको जैसा योग्य लगे वैसा करो। फिर शेठने सबकी संमति लेके बड़ी बहूको घरका कचरा काढले का काम सोंपा, क्योंकि वह फेंक देने में कुशल थी । दाना खा जानेवाली दूसरी वहूको रसोड़ा का (भोजनशाला) का काम सोपा । दाना सावधानी पूर्वक रखनेवाली तीसरी बहूको घरके दागीना, जवाहरात वगैरह रक्षणका काम सोंपा और चौथी वहूको शेठने घरके नायक तरीके स्थापी। इससे पूछके यह जैसा कहे वैसे सभी काम करें एसा सवले कह दिया। चौधी वह्न सवले छोटी थी फिर भी शेठने उसकी होशियारी देखके सवकी आगवान वना दी। - गृह संचालन की आगवानी किसे सोंपी जा सकती है जिसमें योग्यता हो उसे । अयोग्य के हाथमें गृह संचलनका कार्य सोंपने में आवे तो धूलघानी करके यानी घरकी इज्जत का दिवाला निकाल दे। ... अन्यको प्रतिबोध करने को देव नरक में भी देवपने के शरीरसे जा सकते हैं।
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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