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व्याख्यान-सत्ताईसौं ।
३५७ में सम्भारभ पूर्वक नहीं करें। इसलिए इसमें कुछ हमारी अक्ल की परीक्षा करने का हेतु ससराजी का होना चाहिये।
एसा विचार करके उसने भाई को बुलाकर ये पांचों दाना देकर उससे कहां कि वर्षा ऋतु में इन पांच दानों को वो देना ।' इन दानों में ले जितने पके उन सव दानों को दूसरे वर्ण वो देना । इस तरह वर्षे वर्षे करते जाना। - इस प्रसंग को बने पांच वर्ष बीत गये । इसलिए शेठ ने पुनः पूर्वं की माफक ही स्नेही जनों का भोजन समारम्भ योजा । सवको अच्छी तरह से जिमाने के बाद सवको एक स्थान पर उचीत आसन पर बैठाया । . . - इसके बाद शेठने अपनी चारों पुत्र वधुओं को बुलाया और कहां कि पांच वर्ष पहले मैंने पांच दाना तुम्हें दिये थे। वे पीछे दो। - पहली बहू पहले तो फीकी पड़ गई। क्योंकि उसे तो पांच दाना को वात याद भी नहीं रही थी। फिर उसने कोठार मेंसे डांगर के पांच दाना लाके शेठ को सुप्रत किये। . ..
शेठने उससे पूछा कि जो दाना मैंन तुम्हें दिये थे वे. यही हैं कि ये दूसरे? तव वह समझ गई। और कवूल किया कि उन दानों को तो मैंने घरके वाहर फेंक दिये थे। - दूसरी बहू भी इसी प्रकार फीकी पड़ गई। और उसने कहा कि आपके द्वारा दिये गये दानों को तो मैं 'तुरन्त ही खा गई थी। ...
तीसरी बहू को नम्वर आया । इसलिये वह तो गहनों के कवाट में रख दिये गये उन दानों को लेके आ गई । ..और शेठको सुपरत किये। . .
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