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________________ व्याख्यान-छब्बीसवाँ . ३४९... - (माफी-क्षमा) कराई। अपने तरफ की ममता का त्याग कराया, सुकृत्यों की अनुमोदना करायी। देहके ममत्वका त्याग कराके इस सती स्त्रीने अपने पति युगवाहुको धर्म । के शरणमें स्थापित किया । . .... ... इस तरह आराधना करते करते उसका देह निष्प्राण । बन गया । इसलिये एक क्षणका भी विलस्व किये विना महासती मदनरेखा रातोंरात वहाँले भागी। क्योंकि वह सगर्भा थी इसलिये उसे अपने शीलके रक्षण के लिये भागना पड़ा । ... - मदनरेखा वहाँसे दौड़के जंगल में चली गई । घोर भयंकर जंगलमें. चलते चलते मदनरेखा थक गई । एक कदम भी आगे बढ़ने की शक्ति नहीं रही, कांटे और कंकर से पैर छुल गये । एक वृक्षके नीचे मदनरेखा बैठ गई। नवमा महीना चालू था। पेठ में पीड़ा होने लगी। भयंकर पीड़ा ! किससे कहें ? यहां कोई खबर लेने वाला नहीं था। वेदना बढ़ गई मदनरेखा अर्ध बेभान हो गई। . एक पुत्ररत्न का जन्म हुआ। माताकी आँखे खुली पुत्र को देखा । दायन क्रिया करने वाला कोई नहीं था। 'महा प्रयत्न से पास में वहती सरिता के तट पर जाकर . 'शुचि कर्म करने लगी। सरिता के मीठे जलपान से तृपा शान्त हुई। क्षुधा . लगी थी लेकिन खाना क्या ? - एक विद्याधर विमान में बैठकर प्रकृति सौन्दर्य देखता देखता नंदी श्वरद्वीप की यात्रा को जा रहा था ।
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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