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________________ ३५० - प्रवचनसार कर्णिका उसकी दृष्टि मदनरेखा पर गिरी। और वो चौकः उठा। कितना सुन्दर रूप! एसी सौन्दर्यवती स्त्री यहां जंगल में कहां ले? ये तो मेरे अन्तःपुर में ही शोभ सकती है। विद्याधर इस तरह से मदनरेखा को देखकर मोहित वना । विद्याधर निचे उतरा। मदनरेखा के पास आकर खड़ा हो गया। नवजात शिशु पुत्र वृक्ष के नीचे रो रहा था। मदनरेखा को उद्देश्य करके विद्याधर बोला : देवी ! महादेवी ! तुम्हें देखने के बाद मैं तुम्हारा चरणदास बन गया हूँ। तुम्हें ऐसे घोर जंगल में रखडती छोड़ने वाला कौन मदनरेखा परिस्थिति समझ गई। वह विचार करने लगी कि हाल तो परिस्थिति के ताने होकर काम निकालना ठीक है। इस समय सामना करने में नुकसान है। महाशय आप कौन हैं ? मदनरेखा ने पूछा। "मैं विद्याधर हूं! नंदीश्वर द्वीप की यात्रा करने जा . रहा हूं। बीच में तुम्हे देखकर परक्श बन गया । देवी ! मेरा स्वीकार करो। महाशय ! प्रथम मुझे भी यात्रा कराओं। यात्रा करने के पीछे सब अच्छा होगा। विद्याधर को सन्तोष हुआ। ___ मदनरेखा को विद्याधर ने विमान में डाली । शीव गति से विमान उड़ा । अल्प समय में विमान नंदीश्वर द्वीप के उद्यान में उतरा।
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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