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________________ - - - ३४८ प्रवचनसार कर्णिका अपराध नहीं कर सकता है, दूसरे तो सिर्फ निमित्त रूप 'वनते हैं। एसा कहके मदन रेखाने समझाया कि सच्ची बात तो यह है कि तुम्हें मारने वाला तुम्हारा भाई नहीं है लेकिन तुम्हारे कर्म हैं और तुम्हारे भाई तो एसे पाप कर्मले मरे हुए ही हैं। एले खुदके पापसे मर रहे को मारने का विचार करना ये आप जैसे समझदार को शोभा "नहीं देता है। __ इस तरहले मनमें शांतवन-आश्वासन देने पर भी मदनरेखा मनमें समझती थी कि मेरे सिर पर भय तुल - रहा है। वह समझ गई थी कि मेरे रूपको भोगने की लालला के पापने ही मेरे जेठके पालले एसा अतिशय नीच कर्म कराया है। जिसे एसा नीच कर्म करते आंचका (झटका) भी नहीं लगा वह अव मेरे ऊपर कैसा गुजारने को मथेगा इसको कल्पना भी सदन रेखा को आ गई थी। इतना होने पर भी इस समय तो उले उसकी आँख के सामने खुदकी चिन्ता नहीं थी लेकिन अपने पति के भले की ही चिन्ता थी।। यह पवित्र प्रताप किसका ? आर्य संस्कार और 'आर्य शिक्षण क्या चीज है! इसका सुन्दर ख्याल इस प्रसंगमें से मिल सकता है। मदनरेखाने अपने पतिके जलते जिगर को ठंडा कर 'दिया, फिर उसने अपने पतिको परमात्मा आदि के चार शरण स्वीकार कराए और उनके पापसे अठारह पापस्थान कों की आलोचना कराई। सब जीवोंके साथ खमतखमणा
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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