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________________ ३४७ - - व्याख्यान-छब्बीसवाँ रोने ही लगे। अरे! मेरा क्या होगा? एले रोदना रोके मरनेवाले की गतिको ही विगाड़ डाले । . .. पत्नी जो समझदार हो और सच्ची. हितस्विनी हो तो एसे समय वाह्य और आत्मिक भक्ति पति की एसी करे कि जिससे पति उस सरय असमाधि से बच जाय। और समाधि पूर्वक मृत्युको पाके सद्गति को पानेवाला वने । महा सती मदनरेखा विवकिनी थी इसलिये अपने पति युगवाहुकी परम हितस्विनी थी इसलिये वह स्वस्थ और धीर चनके अपने पतिके पास बैठ गई। उस समय मदनरेखा का एकही ध्येय था कि पति के मरणको विगढ़ने नहीं देना चाहिए । इसलिये अपने स्वरको रोजकी अपेक्षा भी अधिक वृद्ध बनाके उसने अपने पतके कानमें एसी वातें सुनाना शुरू की कि जिलले युग वाहुका उसके भाईके प्रति पूरा रोष उत्तर गया। उसने उपशान्त वनके अन्तकालीन आराधना सुन्दर रीतसे की। - मदनरेखा समझ गई कि पति का मरण समाधिमय बनाने के लिये उनके हृदय में उनके भाईके प्रति रोष जरा भी नहीं रहना चाहिए इसलिये उसले सबसे पहले पतिको समझाया कि तुम धीर हो, इसलिये धीरता को धारण करो, तुम्हारे चित्तको सुस्वस्थ बनाओ। तुम बुद्धिशाली हो इसलिये किसी पर रोष नहीं करो और हाल में तुम्हें जिल वेदना का अनुभव हो रहा है उसे तुम धीरता से सहन करो क्योंकि यह वेदना अपने ही पूर्वकृत कर्मों के. उदयले आई है। जीवमात्र का कोई अपराध करनेवाला हो तो वह उसका निजीकर्म. ही है। दूसरा कोई जीवकाः
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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