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________________ - - - प्रवचनसार कर्णिका सिर पर घरके युगवाहू जैसा ही नगर तरफ जाने के लिये चला कि तुरन्त ही राजा मणिरथने उसके गले पर अपनी तलवार फेर दी। (यानी राजा सणिरथने अपने छोटेभाई. युगवाहू को तलवार से घायल कर डाला)। मणिरथ के द्वारा किये गये तलवार के प्रहार से युनवाहू इकदम जमीन के ऊपर पड़ गया। यह देखके सदलरेखा के द्वारा दर्दमय चीस निकल जाने से उद्यान के द्वार में खड़े सुभट आ पहुंचे। - सुभटों को आया हुआ देखके राजाने कहा डरो नहीं। मेरे प्रमादले मेरे हाथमें से ही तलवार गिर गई है। राजाने छिपाने का बहुत ही प्रयत्न किया किन्तु फिर भी राजाके चारित्र को सुभट समझ गये । और राजाको बलात्कार से खाना कर दिया । और युगवाहू को बचा लेने के उपाय योजने लगे। मदनरेखा को पहले तो एस्टी घटना वन जाने से चहुत ही आघात लगा। लेकिन जहां उसने देखा कि क्षण क्षण में पति निश्चेष्ट बनते जाते हैं, घड़ी घड़ी में जीभ खिच रही है और आँखें वन्द हो जाती हैं । इसलिये वह समझ गई कि अब पतिकी मृत्यु नजदीक में ही है। एसा ख्याल आने के साथही मदनरेखा फिरसे स्वस्थ बन गई और धैर्यको धारण कर लिया। मदनरेखा अवसर को समझ गई इसलिये अपनी आँसमें एक भी अश्रु विन्दु को नहीं जाने दिया। इतना ही नहीं बल्कि वह अपने पतिको अन्तकालीन आराधना कराने लगी। - मदनरेखा की जगह कोई दूसरी विन समझदार स्त्री होती तो पतिको मृत्युकी पथारी पर पड़ा हुआ जानके
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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