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________________ व्याख्यान-छवीलवाँ .. ३४५ - - - - .. उसके हृदय में इन्हीं विचारों ने घर कर लिया था कि जब तक मेरा छोटाभाई युगवाहू जीता है तब तक यह मदनरेखा मेरी वनना मुश्किल है। एसे विचारों के योगसे उसे अपना छोटाभाई भी शत्रु जैसा लगने लगा। और उसने कुछ भी करके अनुकूल अवसर की प्राप्ति के समय अपने छोटेभाई को मार डालने का निर्णय किया I. .. रूपका आकर्षण और कामकी आधीनता ये कितनी भयंकर वस्तु है यह समझने और ख्यालमें रखने जैसी 'वस्तु है। स्वार्थ में अंध वने जीव सगेभाई का भी संहार करने के लिये तत्पर वन जाते हैं । यह विषम संसार की भयंकरता है। - एक वार युगवाहू अपनी पत्नी मदनरेखा के साथ उद्यान में क्रीडा करने के लिये गया । रात्रि के समय वह निश्चितपने ले वही रहा । राजा मणिरथ को यह मालूम होते ही उसने अपने दुष्ट मनोरथ को सफल करने का . सुंदर मौका मान लिया । इस समय वह दुष्ट राजा खुली तलवार से उद्यान में आ गये । एली अंधेरी रातमें मेरे भाई को कुछ भी उपद्रव नहीं हो एसा ढोंग से.वोलता बोलता वह वहां 'पहुंच गया कि जहां युगवाहू था । . अपने बडील भ्राता को अपने पास आ पहुंचा हुआ देखके विनयी युगवाहू ससंभ्रम खड़ा हो गया । और अपने वडीले के पगमें लगा। अरे । एसी अयंकर काली रातमें एसे स्थान में तो रहा जाता होगा । इसलिये चल नगरमें । एसे दांभिक चंचनों को वोलते हुये । राजा मणिरथ की आज्ञा को.
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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