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________________ व्याख्यान - छच्चीसवाँ ३३५ दुकान से आके तपास करता हूं तो गिन्नियाँ गुम ! वैरीमें यानी पत्नीमें कुछ भी ठिकाना नहीं है । वह घरमें थी फिर भी ध्यान नहीं रक्खा कि गिन्नियाँ कौन ले गया ? क्या गिनिको गोखला निगल गया एसा कहके कपूरचन्द शेठने लकड़ी का एक वा महाराज जिस पलंग पर सोते थे उस पलंगके एक पाया पर किया । लकड़ी ( डंडा ) का धडाका होते ही महाराज जग गए । शेठने कहाकि हमारे यहाँ आज सुबहले ही यह महात्मा पधारे हैं। मैंने इनकी जितनी वन सकी भक्ति भी की है । इस रूम (ओरडा) में वे सो रहे हैं, वे तो कहीं गिन्नीयाँ ले सकते ही नहीं हैं ! और अगर उन्होंने ले भी ली हों तो उन्हें रक्से कहाँ ? नींद से एकदम जग गए महाराज वावाजी तो यह सव धमाल देखके घवरा गए । इतने में तो शेठने इकट्ठे हुए मनुष्यों से कहा कि शायद तुमको इन महाराज के ऊपर शक आता हो तो उनके पास जटा सिवाय गिन्नीयाँ रखने का कुछ भी साधन नहीं हैं इसलिये मैं खुदही महात्मा की जटा तपास लेता हूं ऐसा कहके शेठने वावाजी की जटां पकड़ के 'झटका मारा इतनेमें खरर करतीं नव गिन्नियों का ढगला (ढेर ) हो गया । चिनियाँ सवने गिनी तो वरावर नव ही हुई, फिर तो लोग पकड़में रहे ? कोई लात, कोई मुक्का, कोई थप्पड इस तरह जिसे जो आया जैसा ठीक लगा उससे बावाजी को मैथीपाक चखाने लगे यानी मारने लगे । महाराज खूब चिल्लाने लगे किन्तु उनका सुने कौन ?
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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