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________________ - - - प्रवचनसार कणिका घरकी पत्नीको भी शेठने सूचना कर दी कि महाराज आराम कर रहे हैं इसलिये कोई भी रूममें नहीं जावें और न आयें । आवाज भी कोई नहीं करे एसा कहके शेठ तो दुकान पर चले गए। महाराज भी खुदको पेट भरके अच्छा अच्छा खाना मिलने से और सोनेके लिये सवामन रूईकी गादीवाला पलंग मिलनेसे मनही मनमें आनन्दित वन गए। महाराज पलंग पर सोए कि नहीं सोए इतने में तो नसकोरां बोलने लगे (धुर्राने लगे) यानी एसे सोए कि उनकी नाक के छिद्रोंमें से जोर-जोरसे आवाज आने लगी।। आधा घण्टा पूरा भी नहीं हुआ था कि इतने में तो कपूरचन्द शेठ खूब गुस्ले होते हुए और चिल्लाते हुए वापस घर आए और उनकी स्त्रीसे कहने लगे कि जहाँ महाराज सो रहे हैं उस कमरे में एक गोखला (आला) के अन्दर मैंने नव गिन्नियाँ रक्खी थी वे कहाँ गई? . स्त्रीने कहा मुझे खवर नहीं है, एसा जवाव मिलते ही शेठका गुस्सा आसमान पर चढ़ गया और हाथमें जो चीज़ आई उससे शेठानीको मारने लगे। घरमें तो धमाचकड़ी मच गई और शेठानी वूमवराडा पाडने लगी यानी चिल्लाने लगी। मैं मर गई, वचावो ! बचावो! . शेठानी का चिल्लाना सुनके आसपाल मोहल्ला के ‘पच्चीस पचास मनुष्य इकट्ठे हो गए और शेठको शान्त करके पूछने लगे कि हुआ है क्या ? वह वात तो करो! . शेठने कहा-क्या वात करूं? मेरा कपाल ! मैं मेरे रूमके अन्दर के गोखलामें नव गिन्नियाँ रखके गया था।
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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