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________________ व्याख्यान-छब्बीसवाँ ३३३: - - - - %3 " लालो लाभ विना लोटे नहीं" इसलिये जरूर कुछ न कुछ दालमें काला है।.लेकिन अभी कुछ भी नहीं पूछना है। फिर पुंगी। एसा विचार के उस स्त्रीने तुरन्त ही लव वहां हाजिर कर दिया। : मोरके अंण्डोंको तो कहीं चितरना पड़ता है ? इस तरफ खुद शेठने महाराज के पैर धोये, लूछे ओर पलंग पर बैठाया । फिर अपनी स्त्रीले कहा कि सुन! झूगके आटेका घीसे भरा हुआ शीरा (हलुवा), भजिया, पुरी, दाल-भात, लाग अच्छे से अच्छा जल्दी वना। यह सुनके महाराज के मुंहमें तो पानी आ गया। थोड़ी देरके वाद रसोई तैयार हुई। - चाँदीकी थाली कटोरीमें रसोई परोसके महाराज को जीमने विठाये । कपूरचन्द और उनकी पत्नी खड़े होकर । उनकी भक्ति करने लगे। आग्रह करके महाराज को जिमाने लगे। - महाराजने जितना खाया गया उतना खाया और दो-तीन दिनकी भूख दूर की। शेठने. जिमाने के वाद: मसाला से भरपूर सुंदर पान खिलाया। महाराज एसा भोजन कभी जीसे नहीं थे इसलिये जीम करके शेठ-शेठानी पर खुश खुश हो गए। - जीम लेने के बाद कपूरचन्द शेठने दो हाथ जोड़के महात्मा से कहा कि महाराज! हमतो रहे संसारी लेकिन मेरा मन तो तुम्हारे पास से क्षणं भी दूर होना नहीं चाहता है परन्तु दुकान लेके बैठा हूं इसलिये घण्टा दो घण्टा दुकान पर जाके वापस आता हूं तबतक आप मजे से पलंग पर आराम करें।
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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