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________________ .३३६ प्रवचनसार लर्णिका . -- .. और जो आया वह कहने लगा कि साला, लुच्चा, चोर, लफंगा, ठग एले शब्दों के साथ बावाजी को पीटने लगे। सभी कहने लगे कि विचारे शेडने आगता स्वागता करके इसे घर लाये, सेवा-मिठाई खिलाई और इल शेठके घरही इस सालेने हाथ मारा इसलिये ठगको तो छोड़ना ही नहीं, पोलीस को बुलाके पकड़ा ही दो। बावाजी को मार मारके विचारे का साया पिया .. सब लोगों ने उका लिया । महाराज बहुत ही प्रार्थना करने लगे किन्त अधिक मनुष्यों में उनकी सुने कौन ? . अन्त में सेठ ने कहा कि देखो भाई ! मनुष्य मात्र भूल के पात्र है । कैला भी हो लेकिन फिर भी है तो साधु ! उसने को भूल की सजा उसे मिल गई है। अब तो एसी भूल करने का नाम ही भूल जायगा इसलिये अव जाने दो। - वडी मुश्किल से महाराज बचे, सव मनुष्य भी अपने अपने घर चले गये। फिर से सेठानी को याद आ गयां कि "लालो लाभ विना लौटे नहीं"। संसार में सुख ये आश्चर्य है, और दुख ये वास्तविक है। इस दुख को दूर करने के लिए साधुपना है। • जीवन में न्याय नीति आवश्यक है। एसा धर्म शास्त्रकार कहते हैं । धर्मके रक्षण के लिये जीवन का बलिदान भी देना पड़े तो देना चाहिए। एसा शास्त्रकार कहते हैं।
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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