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________________ - - व्याख्यान-चौवीसवाँ ३०३ चाहिये । उसके साथ २ धार्मिकता के भी सुसंस्कार होना चाहिये। __मनुष्यको भाग्य कहां ले जाता है उसकी खबर नहीं __.. होती है। . आज तो नगरी में एक नट मंडली नृत्य करने को आई थी। नगरी के बीचोबीच विशाल चौक में दोरडा... (रस्सीयाँ) बाधीं थी। खम्भे लगाये गये। _ नगरी में ढोल पिटा कि "चलो नृत्य देखने के लिये" ... "चलो खेल देखने ले लिए"। यह ध्वनि इलाची के कान में पड़ी। इलाची भी अपने मित्रों के साथ नृत्य देखने गया । खेल देखते देखते नृत्य कुशल एक कुमारी को उस नट . . मंडली में नाचती इस इलाची कुमार ने देखी । .. - देखने के साथ ही भान भूल गया । ये कुमारी सौन्दर्यवान थी। ये रूप को अंवार थी। नमनी इसकी 'नाक और सुन्दर कटि प्रदेश थी । वस ! सादी करूँ तो इसके साथ ही इलाची को इसकी जिंद लग गई। . घर जाके माता पिताको अपनी भावना वताई । मां वाप तो यह सुनके वहुत ही दुःखी हुए। इसको · · और भी प्रलोभन वहुत दिये । लेकिन ये वन्दा दूसरा - माता पिता ने दुखी मन से नटराज के पास कन्या की माग की। . . . . . . . . लेकिन ऐले तो वह नट कवूल करे ? कुछ भी हो. फिर नात जात का मूरतिया (वर) शोभता है। नटने स्पष्ट किया । . . . . . . . . . . . .
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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