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________________ "३०२ प्रवचनसार कणिका में भी सहनशील वनना पडता है। तो यहां शासनकी सेवा करने में भी सहनशीलता जीवन में उतारना पडेगी। “संसारी व्यवहारो में तो पराधीन वनके सहन करना है। ‘जवकि यहां तो स्वाधीनता पूर्वक सहन करना चाहिये। जिस घरमें स्त्री सहनशील होती है वह घर अच्छी ‘तरह से चल सकता है । इसलिये जिस घरमें स्त्री संस्कारी होती है वह घर दीप उठता है । जीवन का खेल भावके आधार पर है। भाव अच्छा तो जीवनका खेल भी अच्छा । . एक नगरी में करोडपति शेठका लडका इलाचीकुमार सुखमें मलक रहा था । पानी मागने पर दूध हाजिर हों ' एसी उसकी पुन्याई थी। दास-दासी दिनरात सेवामें हाजिर रहते थे । . धनदेत शेठ के यहां ये इलाचीकुमार एक का एक 'पुत्र होनेसे खूब ही लाडला था । इलाचीकुमार को जरा 'भी दुःख न हो इसकी सावधानी माता-पिता और भवन के दास-दासी सभी रखते थे । इलाची की उम्र वीस वरस की हो गई थी। भर यौवन, सुकुमाल काया, और तीव्र वुद्धि देखके अनेक श्रेष्ठी अपनी प्रिय कन्याओंको देने के लिये आ रहे थे। अनेक कन्याओं के चित्र आते थे । और जाते थे। लेकिन इलाची के लिये एक भी चित्र पसन्द नहीं . आता था । इलाची भो मन पसन्द कन्याओं को परणने के लिये इच्छता था । .ये समझता था कि जिसके साथ जीना है। एसी .. नारीमें भावना त्याग, प्रेम, सहिष्णुता और यौवन ये सब
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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