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________________ व्याख्यान-तेईसवाँ . २८९ ....: अभी रातके दश बजे हैं। मैं राजकुमार के मुडदें - को उठाके ले जाता हूं। . . . . : तू घरका दरवाजा वन्द करके आराम से सो जाना। एसा कहके शेठ तो मुडदा को खंधे पर उठाके घरके वाहर निकल गये। और सीधे जहां नगरकी वेश्याका आवास था वहां पहुंच गये। उसके घरके दरवाजा के पास राजकुमार के मुडदा को वरावर खडा कर दिया । - शेठ तो जानते ही थे कि नाजकुमार व्यसनी है लवाड़ ... है हररोज इस वेश्याके यहां जाता था । . .. यह भी शेटके ध्यानमें था ही। ... - इसलिये राजकुमार के मुडदा को बरावर खडा रखके किंवाडकी सांकल खखडाके शेठ तो वहां से रफूचक्कर हो गये । .. - अव इस तरफ वह वेश्या सांकलकी आवाज सुनके दासीसे कहने लगी कि राजकुमार आये लगते हैं । इसलिये तू जल्दी जाके दरवाजा खोल। .. . उस दासीने दौडके आके धडाक करते दरवाजा खोला । इतने में तो घडींग आवाज करता और टेकाले खडा राजकुमार का मुडदा वेश्याके घरके दरवाजे में गिरा। . . . . . .. आवाज के सुनते ही वेश्याने वहां दौडके आके देखातो राजकुमार चत्तापाट (चित्त ) पडा था। और उसका प्राणपंखी उड गया । इससे वह चिन्तित हुई। वेश्याने मनसे विचार किया कि. राजकुमारने आज जरूर
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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