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________________ - - २८८ प्रवचनसार कणिका आई हूं कि वूम बराडा (चिल्लाना) पाडशो नहीं नहीं तो राजकुँवर की अंध उड जायगी । दूधमें सोमल पिलाने की बात सुनके तो शेठके होश हवास उड गये । घबराते घवराते दौडते दौडते इकदम पलंग के ऊपर जाके देखातो राजकुमार लीलाछम (जहरके असरले हरे पीले) हो गये। पूरे शरीर में सोमल चढ़ गया था । राजकुमार तो चिर निद्रा में कायम के लिये पोढ गया था । ( यानी राजकुमार मर गया था)। शेठ तो यह देखकर चिन्ता में चिन्तित हो गये ।। शेठको घबराया हुआ देखके शेठानी भी घबराई । और क्या बात है? वह शेठसे पूछने लगों। शेठने कहा गजव हो गया । यह तूने क्या किया ? राजकुँवर तो मर गया है। सोसल ये कोई खानेकी वस्तु नहीं थी। ये तो जहर था । हलाल जहर खाने के साथ ही मनुष्य मर जाता है। और राजकुमार को भी उसका असर होते ही मर गया है। ___यह बात सुनके शेठानी को मौका मिल गया । झट शेठसे कहने लगी कि इसमें क्या गजव हो गया ? तुम थोडे दिन पहले कहते थे कि मैं धारूं तो आकाशको भी थींगडा वस्त्र मार सकता हूं। तो देखो ! इस राजकुँवरको मारके मैंने तो आकाश फाड दिया है। अव तुम इस आकाशको कैसी सुई से और कैसे दोरासे थींगडा मारते हो? वह मुझे देखना है। शेठने थोडा विचार करके बराटर मेल बैठाके फिर शेठानी से बोले कि अब देखना ? मैं भी आकाशको कैसे थींगडा मारता हूं।
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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