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________________ - - - - व्याख्यान-तेईसवाँ २८७ तो राजकुँवर को गादी विछा दी, पानी पिलाया और दूध लेनेको रसोई घरमें गई। .. ____ अव एसा हुआ कि थोडे दिन पहले शेठ उनके घर " सोमल" लाये थे । और शेठानी ले कहा था कि यह सम्हाल के रखना । जरूर पडेगी तो काम लगेगा । . दूध बनाते बनाते शेठानी को शेठके द्वारा लाया हुआ " सोमल" याद आया। और वह कुछ पुष्टि कारक होगा एसा मानके उस सोमल को दूधमें डालके राजकुँचर को पिला दिया। राजकुँवर भी शरावने नशामें दूध पी गया । थोड़ी देर बाद " सोसल ” जहरका असर होनेसे राजकुँचर गादीके ऊपरसे उठके पासमें पड़े हुये शेटके .. पलंग पर सो गया । बरावर इसी समय शेठ घर आ गये। घरमें प्रवेश करते ही घरमें अनजान व्यक्तिके जूता देखकर शेठ भडक उठे। - शेठ मनमें विचार करने लगे कि मैं पूरे दिन पूरे गाँवमें चौवट करता फिरता हूं। इससे सेरे घर में कोई मेहमान तो आता ही नहीं है। तो फिर आज ये अनजान कौन आया ? . . . . . ' उनने दरवाजा में से शेठानी को बुलाया। वूम सुनके शेटानी दौडकर आके शेठसे चोली कि वूम. नहीं पाडना यानी जोरसे चिल्ला. ओ नहीं। आज अपने यहां सोना का सूरज उगा है । शेठ कुछ समझे नहीं इससे . शेठानी ने सब वात समझा के कही और अन्त में कहा कि मैंने राजकुँवर को सोमलवाला दूध पिलाया इसलिये राजकुँवर वहुत अच्छी नींद आ गई है। इसलिये मैं तुमसे कहनेः
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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