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प्रवचनसार कर्णिका जहां तहां चौवट करते फिरते हैं। जिसकी चौवट करें। सुवह सांज उसके घर जीम लेते हैं। दूसरा कुछ भी धंधा करके नहीं कमाते हैं । तो फिर उनकी वहू एसी कीमती साडी कहां से लाई ?
यह सुनके शेठानी उदास हो गई। जैसे तैसे घर आई। और नक्की किया यानी दृढ निश्चय किया कि शेठ घर आवे फिर वात ।
शेठ घर आये । और देखातो शेठानी का मिजाज वरावर नहीं लगा । उसका कारण पूछा। शेठानी रोते. रोते कहने लगी कि गाँवमें सव मुझे अंगली बताके कहते हैं कि कुछ भी व्यापार धंधा किये विना दूसरो की पंचायत करनेवाले चौबटिया शेठकी बहू एसी कीमती सारी कहां से लाके पहनती है ?
यह सुनके शेठ कहने लगे कि गाँवके मुँह पै जलना । (वस्त्र) नहीं वांधा जा सकता है। दूसरे सव कुछ भी
कहें मगर मैं धारूं तो आकाश को भी थींगडां. (वस्त्र) मार सळू एसा हूं। हाल तो कुछ नहीं लेकिन कोई.एसा समय आवे तब मेरी परीक्षा करना।
इस वातको आठ दस दिन बीत गये । पीछे एक दिन शेठ वाहर गाँव गये थे। उसी दिन उसी गाँव के राजाका कुँवर इस शेठके वहां आया। इस कुँवरकी चाल चलगतं (आचरण) खराब थी। जुआ और शराब का व्यसनी था । शराब पीके अचानक शेठके ही घरमें : आ गया । . . . . . . . . . . . . . . . . . . .
शेठानी को इसकी कुछ भी खबर नहीं होनेसे उसने