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________________ व्याख्यान-तेईसवाँ २८५: .. मृत्यु के समय धर्मी मनुष्य अपने परिवार से कहे किः तुम मेरी चिन्ता नहीं करना। मेरे कर्म साथ में हैं। मुझे __ धर्म सुनाओ। और लद्गृति में भेजो । धर्म को नहीं प्राप्त हुये जीव मरते समय बोलते हैं कि. . फलाने के साथ अपना वैर है। इसलिये तुम वहां नहीं जाना । जो जाओगे तो मेरा जीव शान्ति से नहीं जायगा। श्रद्धावान श्रोता हो और विद्वान :वक्ता हो तो वर्तमान में भी अपना शासन एक छत्री बन सकता है। अच्छे मनुष्य का काम यही है कि किसी को भी सलाह अच्छी दे । वह सलाह देनेके वाद सामनेवाला माने अथवा न माने ये उसकी इच्छा की वात है। एक गाँवमें एक शेठ रहते थे। वे शेठ पूरे गाँवकी पंचायत करते रहते थे। . - इसलिये लोग उन्हें "चौवटिया" कहते थे । वे थे बुद्धिशाली । किसीके घर किसी प्रकारका मनदुःख हुआ हो तो शेठको बुलाता था । शेठ जैसे तैसे लडाई मिटा देते थे इससे वे चौवटिया शेठ " सच्चे हैं " इस तरह प्रसिद्ध हो गये। ... एक समय दिवाली के दिन शेठकी वह अच्छी साडी पहनके पानी भरने जा रही थी। तव गाँवकी दूसरी स्त्रियां घुसफुस धुसफुस वातें करने लगीं। इससे उस शेठकी वहूको यह इन्तजारी हुई कि. ये स्त्रियां क्या बातें करती हैं ? और एक ध्यानसे वात सुनने लगी । . .. .. . तव, उसके कान पर,शब्द पडे. कि शेठ तो गाँवमें
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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