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________________ - व्याख्यान-वाईसवाँ २५९ . अज्ञानी को जिन कर्मों को खिपाने के लिये करोडों . वर्ष लगते हैं ज्ञानी उनको श्वासोच्छवास में खिपा देता है। गधा चंदन के भार को ले के जाता हो फिर भी चन्दन की सुगंध को नहीं पा सकता है। उसी तरह क्रियावन्त जो अज्ञानी हो तो क्रिया की सौरभ को नहीं पा सकता है। अज्ञानी मास क्षमण का पारणा में मास क्षमण कर के जितने कर्म खिपाता है उससे कई गुना कर्म को. ज्ञानी . सिर्फ नवकारसी के पचक्खाण से भी खिपा सकता है। ज्ञान ये कल्पवृक्ष है। ज्ञानधन एसा है कि उसकी चोर चोरी नहीं कर सकता है। राजा नहीं लूट सकता है। पांच ज्ञानों में से श्रुतज्ञान स्वपर प्रकाशन होने से तथा दूसरोंको भी दिया जा सकने लायक होने से उसकी कीमत अधिक गिनी जा सकती है। .. तीर्थकर भगवन्त भी श्रुतज्ञान के प्रकाश करने के - द्वारा तीर्थकर नाम कर्म खिपाते हैं। . मूर्ख के आठ लक्षण हैं : (१) निश्चिन्त हो (२) अति भोजन करने वाला हो (३) शरम विना का हो (४) खूब ऊंघने वाला हो (५) नहिं करने योग्य प्रवृत्ति वाला हो (६) मान अपमान को नहीं समझने वाला हो (७) निरोगी काया वाला (८) स्थूल शरीर वाला हो। ... (उक्त मूर्ख की संगति नहीं करना । मूर्ख की संगति . करने से अपना ज्ञान भी चला जाता है। सप्त व्यसन के त्यागी बने विना जीवन में धर्म नहीं आता है : . . (१) जुआ (२) मांस भक्षण (३) मदिरापान (४) वेश्यागमन (५) शिकार (६) चोरी (७) पर स्त्री गमन । ..
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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