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________________ २५८ प्रवचनसार कणिका उन्होंने ४५ आगम सुवर्णाक्षरों से लिखाये थे। इक्कीस ज्ञान भंडार बनवाये थे । जैनधर्म का प्रचार उस राजाने खूव . किया। उनके जैसे धर्मी राजा मिलना कठिन है। .. आम राजा को प्रतिवोध करनेवाले श्री वप्पभट्ट सूरीश्वरजी महाराज रोज एक हजार श्लोक यार करते थे। चालू युगमें भी पू० श्री आत्मारामजी (विजयानन्द सूरिजी) महाराज साहव तीनसौ श्लोक कंठस्थ कर सकते थे । आज भी तीस से चालीस श्लोक रोज कंठस्थ करने वाले हैं। अपेक्षा से श्री जिनेश्वर देवकी प्रतिमा बना कर के 'पूजा करने के लाभ की अपेक्षा भी शास्त्र लिखा के प्रचार करने में अधिक लाभ है। क्यों की भगवान की भक्ति में आनन्द जगानेवाली जिनवाणी है। जिनवाणी के विना भगवानकी भक्ति कौन सिखावेगा? - संहार के मोहरूपी जहर को उतारने में जिनवाणी तो रसायन है । अमृत है । पुस्तक के विना पंडिताई नहीं आ सकती है। जो आत्मा सम्यज्ञान के पुस्तके लिखाते हैं वे दुर्गति को नहीं पाते हैं । ज्ञान की भक्ति करने से तोतलापन बोवडापन दूर होता है। और बुद्धि हीन बुद्धिवन्त बनते हैं। वर्तमान में श्री जिनेश्वर देव का शासन श्रुत ज्ञान के आधार पर ही चलता है। इसी लिये श्री वीर विजयजी महाराजने पूजा में गाया है कि: ... "विषम काल जिन विम्ब जिनागम ..... भवियणकुं. आधारा जिणंदा ।"
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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