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- व्याख्यान-वाईसवाँ
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... गुरुदेव के पास आकर पूछने लगे कि हे गुरुदेव!.
शास्त्रोंको सादा कागज पर क्यों लिखाते हो? . गुरुदेवने कहा राजन् ! ताडपत्र खलास हो गये हैं। . कुमारपाल महाराजाने कहा कि हे भगवन् ! मेरे जैसा राजा आपका भक्त हो फिर भी ताडपत्र न मिलें ये कैसे हो सकता है ?
महाराजा आयें राजमहल में। किया उपवास का पच्चक्खाण और बैठे ध्यानमें । जवतक ताडपत्र न मिलें तबतक ध्यान (पूरा) टालना नहीं।
द्रढ संकल्प, द्रढ मनोवल, विशुद्ध भाव यह स्थिति जहां हो वहाँ देव भी नमस्कार करते हैं। ध्यानके वलसे शासन देवी का आसन कंपा । देवी आई राजभवन में । कुमारपाल के सामने आके कहने लगी महाराज! क्या काम है ? फरमाओ।
कुमारपाल राजाने देवी से कहा कि मेरे गुरुदेव . प्रयत्न कर के शास्त्र लिख रहे हैं। उस के लिये ताडपत्र . चाहिये। देवी बोली राजन् ! कल जिस पेड पर आप देखेंगे वहां आप को जितने ताडपत्र चाहिये उतने ताडपत्र मिल जायेंगे।
- कुमारपाल राजा प्रसन्न हो गये । दूसरे दिन जव कुमारपाल महाराजाने बगीचा में जाके एक पेड़ पर से ताडपत्र लेने के लिये हाथ लम्वाया कि वहां तो चाहिये थे उनसे भी अधिक ताडपत्रों का ढेर लगाया । राजाकी प्रसन्नता का पार नहीं रहा । ... . इस कुमारपाल राजा में श्रुतज्ञान की इतनी अधिक भक्ति थी कि उसका वर्णन पूर्वाचार्योंने खूब खूब किया है।