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________________ २५६ प्रवचनसार कर्णिका वप पूर्व की लिखीं हुई हैं। उनका रक्षण करनेले ज्ञानकी भक्ति होती है । जैनागम लिखना, लिखवाना और कोई लिखातां हो तो द्रव्य देकर के भक्ति करना । उससे ज्ञानकी आराधना होती है । छपनेवाले सम्यग्ज्ञान में द्रव्यदान देने से ज्ञानावरणीय कर्मका नाश होता है और सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होती है । ज्ञानका वरघोडा काढना, पुस्तकें वहोराना ये भी ज्ञानको भक्ति है । पूज्य श्री हेमचन्द्र सूरीश्वरजी महाराज साहेबने भगवती सूत्रको पाटणमें वांचा तव कुमारपाल महाराजा रोज सुनने आते थे। जहां जहां प्रश्न आवे वहां वहां कुमारपाल महाराजा खडे होके वन्दन करके एक सुवर्ण मुद्रासे पूजन करते थे । भगवती सूत्रमें छत्तीस हजार प्रश्न आते हैं । प्रत्येक प्रश्न पर ज्ञानका पूजन करके ज्ञानका अमूल्य लाभ कुमारपाल महाराजाने लिया था । श्री हेमचन्द्राचार्यजी महाराजा सातसौ लहिया ( लेखकों ) के पास से शास्त्र लिखाते थे । पूज्य श्री हेमचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजाने साढे तीन करोड लोकों का नवनिर्माण किया था । शास्त्र लिखाते लिखाते एक दिन ताडपत्र खूट गये । जिससे चालू कागजों पर लिखाने की शुरुआत की । उस समय गुरुभक्त कुमारपाल महाराजा वंदना करने के लिये आये | वंदन करके लहिया ( लेखकों ) की तरफ दृष्टिपात किया । -
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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