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________________ - - - - - ૨૪૮ प्रवचनसार कणिका टपक पड़े। इसके बाद राजाके आदेश ले मालवपति का संदेशा राजसभा को सुनाया गया । दूसरे दिनकी मंगल प्रभातमें मुख्य मन्त्री राज्यप्रधान और दश लेवक उज्जयिनी तरफ रवाना हुए । एक महीना के सतत प्रवासके बाद ढीपुरी का मित्र मंडल उज्जयिनी में आ गया। विमलयश राजाका संदेशा मालवपति को देके महामन्त्री वंकचुल को मिलें। पिताका अंगत संदेशा पुत्र पुष्पचुल को दिया । वह संदेशा वांचके वंकचुव को खूब लग आया। संदेशा वाचनेके बाद उसने निर्णय किया कि किसी भी उपाय ले पूज्य पिताश्री के चरणमें जाना। ___एक महीना में यहाँ का सव निपटा के मैं परिवार सहित यहाँ से निकल जाऊँगा । इस प्रकार कहके महा मन्त्रीश्वर आदिको विदा दी। महामन्त्री को गए आठेक दिन बीते होंगे कि वहाँ तो बंकचुलके पेटमें दुखावा चालू हुआ (पेट दुखने लगा)। . धीरे धीरे रोग वढ़तः गया । पेट और सिरका दर्द तथा शरीर की पीडा बढ़ने लगी । वैद्य को दवाई चालू हुई फिर भी शरीर में रोग वृद्धि पाने लगा (रोग बढ़ने ही लगा)। . मालवपति चिन्तातुर हुए। राजवैद्यने आके नाडी देखी। मालवपतिने वैद्यराज से पूछा, "वैद्यराज! कया रोग लगता है ? महाराज! खास चिन्ता का कारण नहीं है। लीवरका सोजा (सूजन) वढ़ जानेसे यह सव तकलीफ है। आज मैं दवाई की वारह पुडिया देता हूँ। हर दो घन्टेमें एक एक पुडिया.. देना । परिश्रम विलकुल नहीं चिन्तातुर से पूछा, का कारण
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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