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________________ व्याख्यान-इक्कीसवाँ २४९ - - उठावें। इससे लीवर कम हो जायगा, मिट जायगा वगैरह सूचना देके वैद्यराज विदा हो गए। .. : कमलादेवी और सुन्दरी खूबही चिन्तामग्न रहने लगी और सेवामें तत्पर वन गई। . .... इसी तरह चार दिन बीत गए । चौथे दिन रातको चंकचुल की तबियत एकाएक विगड़ गई। उस समय कमलादेवीने मालवपति को समाचार भेजें । मालवपति 'घबरा गए । उसी समय राजवैद्यको बुलाने के लिये सेवक रवाना हुआ। राजवैद्य आ गए। वैद्यराजने नाडी जांच के कहा कि महाराज ! रोग भयंकर रूप लेता जाता है। इसके लिये . अभी मैं जो दवाई देता हूं उससे अगर आराम नहीं हुआ तो दूसरी . विचारूँगा।... प्रातःकाल हो गया, वकचुल जरा स्वस्थ मालूम होने लगा। मालवपति उस समय राजवैद्यको लेके हाजिर हुए। कमलादेवी, सुन्दरी और दास-दासियां वंकचुल के आसपास बैठी थीं । राजवैद्यने 'वकचुल की नाडी देखी, जरा विचार में पड़ गए । वैद्यराज को विचारमग्न देखके चिन्तातुर बने मालवपतिने पूछा "तवियत कैसी है ? जो हो वह कहो !" .. . महाराज ! रोग भयंकर है!. औषधि देता है मगर उसका अनुपान विपम होता है। ........... । कुछ भी हो वंकचुल के प्राण बचना चाहिए । रोग शान्त होना चाहिए। वोलो वैद्यराज! क्या अनुमान है?
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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