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________________ २०६ प्रवचनसार कणिका गया । पल्लीवासी आगवान खडे हुए। वंकचूल को नमन करके स्वयं निर्णय किया हुआ अभिप्राय पल्लीवासियों को बताने के लिये प्रार्थना की। वंकचलने सर्वको उद्देश करके बताया कि आप सबकी 'लागणी, ममता और प्रेम देखने के बाद यहाँ रहने के . लिये सम्मत हैं। यह सुनकर पल्लीवासियों ने "चामुंडा देवी की जय" के गगनभेदी नादों से वातावरण गजा दिया। क्योंकि वे.चामुण्डा देवीके उपासक थे जो जिसके उपासक होते हैं वे उसकी जय बुलाते हैं। वंकचूल से उन्होंने भी कह दिया कि आजसे आप हमारे राजा और हम आपकी प्रजा तरीके रहेंगे। हम सब हमारी आजीविका चोरीसे चलाते हैं । अब आपकी आज्ञाके अनुसार वर्तेगें। इस पल्ली में छोटे-बड़े . पन्द्रह सौ मनुष्योंकी वसती है, सब दुःखी हैं। आजीविका के लिये चोरीके सिवाय हमारे कोई दूसरा साधन नहीं है। इत्यादि सव वातोंसे वंकचूल को माहितगार करने .. के वाद वंकचूलने कहा कि भाइयो ! चोरी करना ये पाप नहीं है, लेकिन वह कला है, फिर भी एक वात खास ख्याल में रखना है कि राहगीरों पर हमला करके लूट लेना ये शूरवीर का लक्षण नहीं है। इसलिये आज से तुम्हारे किसी पटेमाणु (राहगीर) पर हमला नहीं करना है और शरीर तथा कपड़े गंदे होनेसे रोगोत्पत्ति होती है इसलिये सवको स्वच्छ रहना सीखना चाहिए और गाँव में गंदकी वहुत रहती है इसलिये सब गंदकी. दूर करके गाँवको स्वच्छ बनाना है। इत्यादि सूचना कर के वंकचूलने सबको विदा किया.।
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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