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________________ - - - व्याख्यान-इक्कीसवाँ २०७ दूसरे दिन बंकचूलको रहने के लिये एक भवन खाली किया उसमें वेकचूलने अपने रसाला के साथ प्रवेश किया। पांचवें दिन बैंकचूलने थोड़े चुनंदा मनुष्यों को लेकर के चोरी करने के लिये प्रयाण किया। पालकी एक. नगरी में से एक रातमें चार चोरी करना जिस से करोड़ों की 'मिल्कत मिले। एसी योजना पूर्वक एक रातमें चार चोरी . कर के वंकचूल एल्ली में आया । एक ही वस्त की चोरी में करोड़ों की सम्पत्ति ले आने से पल्लीवासी खूब आनन्दित वनें । जिस से उनने पंकचूल को वधा लिया। वंकचूलने लाये हुये धन को सभी को बांट दिया । : ... . .. . इसके बाद ग्रीष्म ऋतु का समय पूरा हुआ। अषाढ मास की वदरी वरलने लगी। सूखी जमीन हरी हो गई। कादव कीचड़ से मार्ग व्याप्त बने । नदियों में पानी छलकने लगा। जीव जंतुओं का त्रास बढ़ने लगा। एसे समय घोर .. अटवी में एक जैन मुनियों का वृंद विहार कर रहा था। .... मुनियों के नायक महात्मा विचार चिन्ता में पड़ गये .. कि अब जाना कहां? चौमासा वैठने का काल अल्प समय में आ रहा है। वर्षा ने हद करी है। नजदीक में कोई नगर भी नहीं है। चौमाला वैठने के वाद जैन मुनि विहार नहीं कर सकते । .. .... उस समय एक पडछंद (विशाल) काया: का मानवी खभा के ऊपर तीर और कामठा (धनुष) लेकर मस्तीभर चाल से आ रहा था । यह मानवी दूसरा कोई नहीं (हमारी कथाका नायक) वंकचूल ही था । ... चोरोंकी पल्ली का नायक बनने पर भी गलथुथी (वचपन) में से ही माता पिताने सींचे हुये लुसंस्कारों को वीज. उसके जीवन में से बिलकुल नष्ट नहीं हुआ था। एसी
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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