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प्रवचनसार कर्णिकाः
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मौजडी के ऊपर गई। और राजा चमक उठा। यह क्या ? दुष्ट, नराधम, युवराज ने ही मेरी कीर्ति को कलंकित किया है। मन्त्रीश्वर! यहां देखो। यह मोजड़ो किसकी है?: मौजड़ी को बारीकी से देखकर मंत्रीश्वर ने कहा कि साहब, यह मौजड़ी तो युवराज की हो एसा लगता है। अच्छा। कोटवाल । जाओ। पैर देखने वाले पादपरीक्षकों को ले आओ। जी । कह के कोटवाल चले गये।
महाराजा ने मन्त्रीश्वर को उद्देश्य कर के कहा कि हे मंत्रीश्वर! तलाश कर के सावित होने वाले चोर को सख्त में सख्त सजा फरमानी पडेगी । इस तरह प्रजा के ऊपर होरहे जुल्म को किस तरह निभाया जा सकता है?
नगर शेठ! तुम जरा भी चिन्ता नहीं करना। रत्नहार पीछे लेकर के ही रहेंगे। तुम निश्चिन्त रहो ।
चारों पगी (पादपरीक्षक) आके खड़े रहे। महाराज को नमस्कार किया । महाराजाने उनको फरमाया कि आज अपने नगर शेठ के भवन में चोरी हुई है। तो चोरी करने वाले का पग (पैर)। बतायो । चोरी करने आने वाले की ये मौजडी मिली है। उसे लेकर मैं राजभवन में जाता हूं। तुम जांच कर के पग (पैर) वताओ । कोटवालजी, तुम भी जांच करा के सुझे खवर दो।
इस के बाद राजा भवन में आके पलंग में आडी करवट से सो रहा । लेकिन निद्रा वेरन वन गई थी। चिन्ता के वोज से लदे हुये को. निद्रा आती ही नहीं है। प्रातःकाल की झालर वज उठी । मंगल वाद्य शुरू हुये । राजा विमलयश राज. कार्य को आटोप कर के राज्यसभा में पधारे । सभाजनोंने जयध्वनि पुकारी । : .........