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________________ व्याख्यान-इक्कीसवाँ २०१ नगर शेठ के घर में चोरी हुई और वह भी युवराज ने की। एसी यात नगरी में चारों तरफ फैल गई। उसका न्याय होगा । उसे सुनने के लिये प्रजा जल्दी सुवह से ही राज सभा तरफ आने लगी। राज सभा का विशाल होल खचाखच भर गया । . चारण वृन्दोंने स्तुति गाई । प्रारंभिक कार्य होने के बाद गई काल की चोरी का प्रश्न उपस्थित हुआ । पाद परीक्षक पगियोंने नगर शेठ के भवन में से निकलते कदम सीधे राज भवन के पिछले दरवाजे तक देख लिये थे इस. के ऊपर से चोकस अनुमान होता था कि यह चोरी राजकुमार ने की। । राजाका फरमान हुआ । मंत्रीश्वर । मोजडी हाजिर करो । मंत्रीश्वर ने मोजडी हाजिर की। कोटवाल ने भी कहा कि साहय, कदमों की जांच कराने से मालूम हुआ कि वे पगलां (कदम) नगरशेठ के भवन से शुरू होकर के राज भवन के पिछले दरवाजे तक देखे गये । वे पैर राजकुमार के ही लगते हैं । और राजकुमार की मोजड़ी तो आपके पास ही है। अब आपको जो योग्य लगे वह कर सकते हो । आप प्रजाके मालिक हो । यह हकीकत सुनकर के महाराजाने राजकुमार को हाजिर करने का मंत्रीश्वरको हुक्म किया। राजकुमार पुष्पचूल राजसभामें हाजिर हुये । महाराज को नमस्कार करके एक आसन ऊपर बैठ गये। . ... महाराजाने पूछा-पुष्पचूल, ईकाल रातको तू कहां गया था? पिताजी ! . क नहीं ! मैं तो मेरे भवन में ही था, राजकुमारने जवाब दिया । . .. .. . . .
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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