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________________ १९९, - - - व्याख्यान-इक्कीसवाँ नगर शेठ की चकोर द्रष्टि द्वार के पास पड़ी मौजडी (जूतीं) पर पड़ी। मौजड़ी को देखकर नगर शेठ चमके ! इकदम कोमल और राजवंशी के ही उपर्युक्त मौजडी को देख कर वे विचार करने लगे कि क्या? राजकुमार चोरी करने थाया होगा? अधिक तलाश करने पर मालूम हुआ कि एक कोटी की कीमतका रत्नहार भी चोरी में चला गया है। नगर शेठ सीधे राजभवन में पहुंचे। विमलयश राजा को जगाया। प्रजा के लिये आधी रात को भी जगे उसका नाम राजा । प्रजा के सुख में सुखी और प्रजा के दुख में दुखी जो हो वह राजा प्रजाप्रिय बने विना नहीं रहेगा। - राजा विमलयश और नगरशेठ दोनो जने खंडमें बैठकर गोष्ठी करने लगे। वहां तो मंत्रीश्वर और कोटवाल भी आ गये। चर्चा चालू हुई.। . . . ५. क्यों नगरशेठ! आपको पकाएक आना पड़ा? महाराजाने पूछा। प्रत्युत्तर में सर्व हकीकत महाराजा को कहते हुये नगरशेठ वोले महाराज | गजवकी बात है। मेरे धन भंडार में चोरी हुई है। रक्षक जग जाने से अधिक माल तो नहीं गया। परन्तु एक कोटि की कीमत का रत्नहार उपड़ गया है। मिली हुई निशानी से चोर का अनुमान तो हो ही गया है। फिर भी आप पधार कर के नजरोंनजर देखो वह सब से अधिक श्रेष्ठ है। ..... . . अच्छा तो चलो देख लें। नजरों से देखने से सब वात की जानकारी मिल जायगी। एसा कह के राजा, मन्त्री . कोटवाल नगर, शेठ के साथ नगर शेठ के भवन तरफ गये। धन भंडार को बारीक नजर से देखना शुरू किया। इतने में तो महाराजा. विमलयश की नजर द्वार के पास पड़ी
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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