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________________ १९८ प्रवचनसार कणिका - - - % आमोद-प्रमोद कर के समय व्यतीत कर के दोनो निद्राधीनः . वन गये । दूसरे दिन मंगल प्रभात में जव पुष्पचूल अपने माता पिता को नमस्कार करने गया तव माता पिताने उस से कहा है पुत्र! यह राज्य धुरा अव तुझे सम्भालना है । इस लिये तू अन्य प्रवृत्तियों को छोड़ के राज्य कार्य में रस ले। माता पिता के वचन को मानो सुनता ही न हो इस तरह से पुष्पचूल चला गया । माता पिता को बहुत दुख हुआ। "पडी टेव ते तो टले केम टाली" एक कवि की इस उक्ति के अनुसार पड़ी हुई आदत किसी की मिटती नहीं है ? चाहे अच्छी हो या दुरी । पुष्पचूल की चोरी की बुरी आदत दिन प्रतिदिन वृद्धि करने लगी। एक दिवस एक भयंकर योजना पूर्वक पुष्पचूल ने नगर शेठ के भवन में से चोरी की। ... अनेक चोरियों में कहीं भी नहीं पकड़े जाने के अभिमान. में: अंध वना हुआ पुष्पचूल जब नगर शेठ के भंडार में चोरी करने गया तव भवन के चौकीदार और दास दासी जाग गये । चपल पुष्पचूल अपने साथीदारों के साथ आवाद रीत से छटक गया। लेकिन उसके पैर की मौजड़ी (जूती) वहां रह गई। नगर शेठ चौकीदारों को ले जाके भंडार की तलाश करने गया। वहां अलंकारों को चारों तरफ वेरण छेरण (विखरी हुई ) अवस्थामें पड़े हुये पाया । चोरी करने को आनेवाले की कुछ भी निशानी खोजने का प्रयत्न करने से
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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