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________________ १६३ - - व्याख्यान-अठारहवाँ और अधिक लेने का प्रयत्न करे तो इन्द्र महाराजा उसे सजा करें। दुख आवे तब रोने को वैठना ये कायर का काम है। सच्ची समाधि का उपदेश देनेवाले तीर्थकर हैं। सुन्दर परिणाम पूर्वक की क्रिया को ही आराधना कहते हैं । तुम्हें जो खराव लगता है उस पर तुम्हें राग नहीं होता है। - सगा लडका भी सामना करे तो तुम्हें उस पर राग 'न हो यानी तुम्हारा उस पर राग नहीं टिके उस पर राग नहीं टिके उसमें हरकत नहीं परन्तु उसके ऊपर से जानेवाला राग अपन को द्वेष लोपके जाता है । वह ठीक नहीं है। .. तुम संसार में बैठे हो इसलिये तुम्हें भोगी कह सकते । परन्तु वास्तव में तो चक्रो और देव भोगी है। ___ कर्म के साथ सेल रखनेवाले को मुक्ति नहीं मिल सकती। कर्म के साथ युद्ध करे उसे ही मुक्ति मिल सकती है। जन्म होने के साथ ही मुक्ति मिले तो ठीक एसी तीर्थंकरों की इच्छा होने पर भी कर्म उनको शीघ्र मोक्षमें नहीं जाने देता। ___ अच्छे आदमी का प्रेम और गुस्सा दोनो मला करते हैं। किन्तु दुष्ट मनुष्य का प्रेम और गुस्सा दोनो बुरा करते हैं। . .. : .. .. जीवन को सफल बनाने के लिये जैनशासन को समझने की परम आवश्यकता है। दरेक जीव जैनशासन के रसिया वते यही शुभ भावना .
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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