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प्रवचनसार कणिकाः
दुनिया के तुच्छ सुखों की प्राप्ति की वांछा से धर्म ... करने वालों को उच्च कोटि की पुन्य प्रकृति बंधती ही: नहीं है।
उच्च कोटि की पुन्य प्रकृत्ति खुद को और दूसरों को तार देती है। हलकी कोटि को पुन्य प्रकृति दोनो को .. डुबा देती है।
उच्च में उच्च कोई भी पुन्य प्रकृति है तो वह है। तीर्थकर नाम कर्म ।
सविजीव करूं शासन रसी की उच्चकक्षा का ... भावनाशील व्यक्ति यह तीर्थंकर नामकर्म बांधता है। . ..
तीर्थकर नामकर्म के उदय से तीनों जगत का पूज्य .. चनता हैं । परन्तु वह पुन्य प्रकृति वांधने के समय वांधनेवाले की भावना त्रिजगत्पूज्य बनने की नहीं होती . किन्तु त्रिजगतको तारने की होती है।
लमन्त्र विश्व का कल्याण करनेवाली अगर कोई कर्म प्रकृति है तो वह सिर्फ तीर्थंकर नामकर्म है।
विश्व में जो कुछ भी अच्छा है वह इस तीर्थंकर नामकर्म का ही प्रभाव है।
बांधनेवाला और भोगनेवाला कोई भी एक व्यक्ति हो परन्तु वह कर्म तीनों जगत का उद्धारक है। इसीलिये कहते हैं कि " नमो अरिहंताणं"।
देवलोक में भी अटकचाला देवों को दुख आता है। यहां से तप करके जाओ इतना ही सुख देवलोक में मिलता है। अधिक लेने की इच्छा हो तो भी नहीं मिल सकता । जो अधिक लेने की इच्छा करे तो दुखी रहे ।