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________________ P व्याख्यान - उन्नीसवाँ ँ अनंत उपकारी श्री शास्त्रकार परमर्षि फरमाते हैं कि असाद एले संसारमें मानव जीवनकी प्राप्ति पुन्यके विना नहीं हो सकती | मनुष्य स्त्रियोंका गर्भकाल जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से वारह वर्ष है । वारह वर्षका गर्भकाल माता और चालक दोनोंको महा दुःखी बनाता है। एक के एक स्थान जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से चौबीस वर्ष भी रह सकता है । जैसे कि एक जीव सरके फिर पीछे वहीं का वहीं अर्थात् उसी गर्भस्थान में उत्पन्न हो पसे जीवके लिए चौवीस वर्ष कहे हैं। ये तत्वकी बातें सुनकर वैराग्य आना चाहिये लेकिन भारे कर्मीको नहीं आता है । एक समय के विषयभोग में जघन्य से एक दो अथवा तीन जीवों की हानि होती है और उत्कृष्ट से नव लाख जीवों की हानि होती है । एक मनुष्य ब्रह्मचर्य पाले और दूसरा सुवर्ण मन्दिर वनवावे तो उन दोनोंमें ब्रह्मचर्य का लाभ बढ़ जाता व्रहाचर्य को सागर और दान को नदी कहा है । सभी व्रतोंमें ऊँचे में ऊँचा व्रत ब्रह्मचर्य है । नव नारद ऋपियों की सद्गति ब्रह्मचर्य के हिसावसे ही होती है । एक समयके विषय संभोग में उत्पन्न होनेवाले लाखों
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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