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प्रवचनसार-कर्णिका. गुप्त रूमका द्वार खोला। रूमके द्वारों में अथवा दीवालों में कहीं भी छिद्र नहीं था, फिर भी पूरा कमरा प्रकाश के समूह से चमक रहा था।
इस दृश्य को देखकर आश्चर्य चकित बने राजा के सन्मुख उस मकान मालिकने उस रूम में रक्खे हुए दो वैलोंके ऊपर आच्छादित कर रखा हुआ बस्न दूर किया। . वस्त्र दूर करने के साथ ही सच्चे हीरा-मोती पन्ना और नीलम के बने हुए वृषभ युगल को देखकर ही राजा. और मन्त्री विचारमें लयलीन हो गए। . रातके समय में लंगोटी लगाके काण्ठ खेंच लाने के । लिये नदी में गिरने वाला और जिसके घर महाराजा वैल देखने के लिये आये वह एक गरीव नहीं किन्तु एक धनिकः बनिया था। . फिर भी उसको चिंथरेहाल स्थितिमें देखकर महाराजा को विचार आया कि क्या इतनी बड़ी सम्पत्ति इस बनिया की मालिकी की होगी ? विचारमग्न महाराजा को उद्देश्य .. करके वह वनिया कि जिसका नाम मम्मण शेठ था, वह वोला कि हे महाराजा! इन दोनों वैलों में से एक बैल को एक सींग नहीं है। वह पूरा करना है तो किस तरह पूरा करूँ ? आप पूरा कर देंगे?
प्रत्युत्तर में महाराजा कहने लगे कि अरे भाई ! मेरा राजकोप भी पूरा कर दूं फिर भी उसका यह एक अंग' . .पूरा होगा कि नहीं, उसकी सुझे शंका है।
__ मम्मण शेठ ने हाथ जोड़कर कहा आप यहाँ पधारे तो मेरा भवन पावन हो गया। अब आप कृपा कर के भोजन आरोगने के वाद पधारो । ... ... ... .