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व्याख्यान-अठारहवाँ
१५९ ( लकडियां ) कौन निकाल रहा था? उसकी जांच करा के उस आदमी को अभी हाल हाजिर करो।
जांच के लिये चारों तरफ सेवक चले। दो घडीमें एक सेवक इस मनुष्य को लेकर हाजिर हुआ।
फटे तूटे वस्त्रों में कंपता हुआ वह मनुष्य एक तरफ खडा हो गया । मगध पतिने खूब अच्छी तरह से देखने
के बाद उसले पूछा महानुभाव ! गई काल रातके समय ___ काष्ठ लेने के लिये तुम पड़े थे ? उस मनुष्यने कहा जी हां।
महाराजा ने कहा कि इतना अधिक कष्ट उठाने का क्या कारण ? तव वह कहने लगा कि साहेव ! मेरे यहां दो वैल हैं ? उसमें एक वैलको एक सींग खूटता है। तो ये सींग पूरा करने के लिये प्रयत्न करता हूं। - राजा आश्चर्य चकित हो के कहने लगा कि मूर्ख! . 'एक सींग के लिये इतना अधिक प्रयत्न करने की कोई जरूरत नहीं । मेरी पशुशाला में से तुझे चाहिये उतने दो चार वैल ले जाना। . . तव वह मनुष्य बोला कि महाराज ! ये वैल दूसरे।
और मेरे बैल दूसरे ! मेरे वैल जो देखना हों तो मेरे 'घर पधारो। .
. महाराजा कहने लगे कि तेरे. वैल पले तो कैसे हैं ? तू जरा बात तो कर । उसने कहा-नामहाराज! उसका वर्णन मुखसे हो सके एसा नहीं है ! आप आकरके प्रत्यक्ष देखो तभी आपको खवर होगी। कितने ही मन्त्रीश्वरों को लेकर श्रेणिक राजा उस बैल के मालिक के घर वैल को प्रत्यक्ष देखने के लिये गए। वहाँ वह मनुष्य राजा और मन्त्रीश्वरों को अपने भवन के अन्दर के रूममें ले गया।