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व्याख्यान-सत्रहवाँ
१५१ अवर्ण वाद कभी भी वोला नहीं । जो अवर्ण वाद वोलोगे तो भवान्तर में जीम नहीं मिलेगी । खाने पीने के लिये अन्न पानी भी नहीं मिलेगा। वोलो तो तोल के वोलो और करो तो जयणा से करो।
अर्थ और काम की ज्वाला में दुनिया सुलग रही है। जन्म मरण की जंजाल में से दुनिया ऊंचीं नहीं आती है। यह है जगत का सनातन चक्र ।
. आचारांग सूत्र में लिखा है कि जगत के जीव वकरा (बोकडा) की तरह वें वें करते हैं । यह कुटुम्व सेरा। स्त्री मेरी । धन मेरा । इत्यादिक मेरा मेरा कर रहे हैं।
पांच प्रकार के प्रमाद दुर्गति में ले जाते हैं। जन्तुओं के रक्षण के लिये देख के चलना उसका नाम है ईर्या समिति । गाडाकी धुरा के समान द्रष्टि रख के चलना चाहिये । तभी जीवों की रक्षा हो सकती है। - ज्यों त्यों देखते देखते नहीं चलना चाहिये। भगवान की पूजा भी सूर्योदय होने के पीछे ही हो सकती है। पहले नहीं। क्योंकि जीव दिखायें इस तरह से यह कार्य करना है। पाप ले रहित और सामनेवाले जीव को दुःख नहीं हो एसी भाषा बोलना चाहिये । उसका नाम भाषा समिति है। . गोचरी के ४० दोष टाल के आहार पानी लावे उसका नाम एपणा समिति है। उपयोगपूर्वक वस्तु लेना उठाना उसे आदान निक्षपणा समिति कहते हैं । फेंकने लायक वस्तु को जयणापूर्वक फेकना उसका नाम पारिण्टायनिका समिति है।
साधु महाराज आहार लेते हैं वह भी संयम के लिये .