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________________ ३५२ प्रवचनसार कणिका लेते हैं । शरीर के लिये नहीं लेते। आहार मिले तो संयम की पुष्टि मानें और नहीं मिले तो खेद नहीं करके तपवृद्धि का आनंद अनुभवते हैं । साधु की बारह प्रतिमा और श्रावक की ११ प्रतिमा शास्त्र में कहीं हैं । अब ये प्रतिमायें धारण करने की आज्ञा नहीं है । पहली प्रतिमा एक मास की दूसरी प्रतिमा दो मास की, इसी तरह सातवीं प्रतिमा सात सासकी है । प्रतिमा में सात प्रहर स्वाध्याय करने का है। और एक प्रहरकाल आहार, निहार तथा विहार के लिये है । आठवी, नववीं और दशवीं प्रतिमा सात अहोरात्रि की है। बारहवीं प्रतिमा साधु महाराज को ही करना है । श्रावकों की ग्यारह प्रतिमा में दर्शन, व्रत, सामायिक पौषध आदि करने का विधान है । प्रतिमाधारी श्रावक आरंभ समारंभ का काम नहीं करता है । और दूसरों से भी नहीं कराता है । अपने लिये चनाया हुआ भोजन नहीं ले सकता है । सभी वस्तुयें साधु की तरह मांग कर के सगा कुटुम्बी के यहां से ले आ के गोचरी की तरह आहार करने का है । संयम में कोई अतिचार आदि दोष लगे हों तो उसकी शुद्धि के लिये अन्तिम समय फिर से महाव्रत उच्चराने की विधि है । क्यों कि उस से परभव सुंदर होता है । परभव को उज्वल बनाने को भाग्यशाली बनो यही शुभेच्छा ।
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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