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प्रवचनसार कणिका
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जीवन में पाप बहुत किये हों वह मृत्यु समय रोते रोते मरता है। ___ भगवान ने जो छोड़ने को कहा है उसे अपन अच्छा कहें तो मिथ्यारव कहलाता है।
जीवन में धर्म होगा तो धन पीछे पीछे आयगा । लेकिन धन के पीछे पड़ने ले धन नहीं मिलता है । इस लिये मनुष्य का पुरूपार्थ धन की अपेक्षा धर्म में अधिक होना चाहिये।
अनंतानु बंधी अपाय चतुक और दर्शन सोहनीय को तीन प्रकृति इस तरह सात कर्म प्रकृतियों के क्षयोपशम समकित होता है। इन सातों प्रकृतियों के क्षय ले क्षायिक समकित होता है।
अनंतानु बंधी का उदय वाला मरते समय अपने कुटुम्ब को कहता है अमुक के साथ अपना संबन्ध नहीं है । इस लियें तुम उस से नहीं बोलना । और उसके बोटले पैर नहीं रखना। . राग द्वेष की गांठ को ग्रन्थी कहते हैं। और वह गांठ अकाम निर्जरा से पिगलाई जा सकती है। . जीवन में कभी भी जो परिणाम नहीं आये हों वैसे परिणाम जागना उसका नाम अपूर्व करण है। इस अपूर्व करण के समय ही ग्रन्थी भेद होता है। अनिवृत्तिकरण ले समकित आता है। समकित एक वार भी आजाने से उस जीवका संसार अद्ध पुद्गल परावर्तन वाकी रहता है। . वन सके तो ज्ञानी की सेवा शुश्रूषा करो। जो न वन: सके तो मौन रहो । लेकिन ज्ञानी की निन्दा, कुथली :