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________________ चैत वदी ६ के सुबह पोलडी पधारने पर भव्य स्वागत हुआ था । ‘मुनि श्री आनन्दधन विजयजी म. की ये जन्मभूमि होने से गाँव में उत्साह अमाप था । श्रीयुत रीखवचन्दजी भाई की तरफ यहां से कोलर तीर्थ का यात्रा संघ काढने का निर्णय होने से संघ में आनन्द की लहर दौड़ गई थी। चैत वदी ८ सुवह १०० भाविकों का. यात्रासंघ आचार्य श्री के साथ कोलर आया । पूजा स्वामिवात्सल्य आदि हुआ था । यहां सिरोही शिवगंज तथा जालोर से भाविक वंदन करने आये थे। सुबह विहार आगे चला चैत्य वदी ११ सुवह वामनवाडा तीर्थ में पधारने पर भव्य स्वागत किया गया । मांडाणी उड आदि से भाविक वंदन करने आये थे । __यहां से छोटी पंचतीर्थी की यात्रा कर के आवू दैलवाडा हो के अचलगढ तीर्थ में पधारे । अचलगढ तीर्थ की पेढी के उपाध्यक्ष श्री पुखराज, जी भंडारी, मंत्री श्री भगनलाल जी मैनेजर श्री भगवतीलाल जी आदिससंघ संमुख आये । और भव्य सामैया स्वागत पूर्वक आचार्य श्री का प्रवेश हुआ था। वैशाख सुदी ६ का दिन खूब ही महत्व का था । क्यों कि आज से रिमन्त्र की आराधना होने वाली थी । पूज्य आचार्य श्री ने सूरिमन्त्र की प्रथम पीठ की २१ दिन की आराधना शुरू की । मुनि श्री आनन्दधन विजयजी ने ऋषिमंडल की . आराधना शुरू की। मुनि श्री जिनचन्द्र विजयजी ने चिन्तामणी पार्वनाथ की आराधना शुरू की। इस आराधना में लाभ लेने के लिये संल्यावन्द भाईओ यहां पहुंचं गये थे । आराधना के दिवस पसार होने लगे थे । भक्त मंडल के दिल में आराधना की पूर्णाहुति के निमित्त महोत्सव उज्जवने की भावना जागृत हुई । इस से आचार्य श्री की सूरिमन्त्र की :
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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