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________________ व्याख्याल-सत्रहवां मानव जीवन को सफल करने के लिये अनन्त उपकारी शास्त्रकार परमर्पि फरमाते हैं कि चौदह क्षेत्र में शझुंजय तुल्य कोई तीर्थ नहीं है। इस तीर्थ की एक नव्या' (निन्यानो) यात्रा और इल तीर्थ में एक चौमासा अवश्य करना चाहिये। : पंडित मरण से मरने वाला अपना संसार अल्प करता है। और वाल मरण मरने वाले का संसार बढ़ता है। : वाल मरण बारह प्रकारका है। . . (१) बलाय मरण-वलोपात कर के मरना। ... (२) वसात सरण-इन्द्रियों के वश होकर मरना। (३) अनंतो सल्य मरण-शल्य पूर्वक मरना । (४) तद् भव मरण-पुनः वहीं होने के लिये सरना । (५) गिरि पडण मरण-पर्वत के ऊपर से गिर के मरना। (६) तरु पडण मरण-इडि (वृक्ष) के ऊपर ले गिर के मरना । (७) जलप्रवेश-जल में डूब के मरना । (८) अग्नि प्रदेश जल के सरना । (९) विप भक्षण-जहर खाके मरना । (१०) शस्त्र मरण-शस्त्र से मरना। (११) वेह मरण-फांसो खाके मरना । (१२) गीध पक्षी मरण-गीध आदि पक्षी से मरना।
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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