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व्याख्यान-सोलहवाँ
प्रभुने दोनो को दीक्षा दी। दीक्षा ग्रहण करके दोनो ने अपना जीवन धन्य बना लिया। . आज नूतन वर्ष के प्रारंभमें चौपडा खाता में जैन लिखते हैं कि “धन्ना शालिभद्र की वृद्धि हो" इस का सच्चा रहस्य यह है कि “ये दोनो महात्मा पुन्यात्मा अढलक ऋद्धि और भौतिक सामग्री के मालिक होने पर भी ये साहवी में मोह को नहीं प्राप्त हुये। और त्याग के पंथ में जल्दी से निकल पड़े। इस लिये हमारे पुन्योदय से हमें भी एसी ऋद्धि मिल जाय तो भी ये प्राप्त ऋद्धि के संबंध से आसक्त नहीं बनकर के इन दोनों पुन्यात्माओंकी तरह त्याग के पंथ में विचरने की हमारी भावना बनी रहे यही हमारी इच्छा है।
विश्व के तमाम प्राणी भौतिक सामग्री के प्रति वैरागी बनके आत्म. हितके ही चिन्तक बनो यही शुभेच्छा । .