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________________ १४० प्रवचनसार कर्णिका इस तरफ शालिभद्रजी के बहनोई धन्नाजी स्नान करने बैठे । इनके भी आठ पत्नियां थीं । एक एक से चढे पसी और आशांकित थीं। और अपार लक्ष्मी थी। एसा वैभव शाली जीवन धन्नाजी भी विता रहे थे। किसी वातकी उनको कमी नहीं थी । देखो वहां प्रेम, उत्साह और आनंद नजर दिखाई देता था। थे धन्नाजी और शालिभद्रजी साले बहनोई के संबन्धसे जुड़े थे। पुन्य शालियों के संवन्ध पुन्य शालियों से ही होते हैं। धर्मावों के संबंध धर्मीयों ले ही होते हैं। तुम तुम्हारे पुत्र-पुत्रियों के लग्न धर्मीयों के साथ करने का प्रयत्न करते हो कि धनवान के साथ ? (सभाको उद्देश्य करके)। साहेब, धन होगा तो सुखी होगा । इसलिये हम धनवान को बहुत पसंद करते हैं। (सभामें से)। लेकिन क्या तुमको खबर नहीं है कि धर्म के आधार पर धन हैं अथवा धनके आधार पर धर्म है ? यह बात समझलोंगे इललिये तुम्हारी सान ठिकाने आ जायगी। धन्ना और शालिभद्र दोनो तो धर्मात्मा थे। और . पुण्यात्मा थे। सरस जोड़ी बनी थी । इतनी पुण्यकी सामग्री मिलने पर भी इसमें फंसे नहीं थे। इसीलिये शास्त्रकारों ने एसे पुन्य. शालियों के उदाहरण शास्त्र में टांके हैं । तुम्हें भी तुम्हारा नाम शास्त्रों में लिखाना हो तो जीवन को धर्ममय बनाने के लिये तत्पर हो जाओ ! .. : : पहले के समय में पत्नियां अपने प्राणनाथ को स्नानं कराती थीं। धन्नाजी को उनकी आठों पत्नियां. स्नान
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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