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________________ व्याख्यान-सोलहवा. . . . - बहा उनमें 8 की पीठ पर रीर पर गिरे करा: रही थीं। वहां उनमें से शालिभद्रजी की वहन के आँख में से दो आंसू धन्नाजी की पीठ पर टपक पड़े। . स्नान शीतल जलसे : चलता था। वहां शरीर पर गिरे अश्रूकी गरमी से धन्नाजी इकदम चमक उठे । यह क्या है। शीतल जलले किये जा रहे स्तान में उष्णता कहां से ऊंचे देखने लगे। देखा कि शालिभद्रजी की वहन रो रही है। धन्नाजी उनले रोनेका कारण पूछने लगे। पत्नी प्रत्युत्तर में कहने लगी कि स्वामीनाथ मुझे दूसरातो कोई दुःख नहीं है परन्तु मेरा भाई शालिभद्र इस संसार से वैरागी बना है। और रोज रोज एक पत्नी का त्याग करता है । बत्तीस दिन में सव छोड़ देगा इसलिये में रो रही हूं। . . . . . . . . . . ... धन्नाजी कहने लगे कि इसमें क्या हुआ? त्याग यही आर्य संस्कृति का. मूपण है । तेरा माई कायर है। इसलिये धीरे धीरे छोड़ता है । छोड़ना और फिर धीरे .. धीरे किस लिये ? जो त्याग करना है तो एकी साथ छोड़. देना चाहिये। पति के ये वचन सुनकर पत्नी ने कहा कि स्वामीनाथ। कहना. तो सरल है मगर करना बहुत कठिन है। आठों पत्नियां एक हो गई। सब समझती थीं कि हमारे मोह में जकड़े हुये प्रियतम हम्हें छोड़कर कहां जानेवाले हैं ? इसलिये आठों कहने लगी कि स्वामीनाथ । विरोध बोलने में नहीं किन्तु करना मुश्किल है।... पतिने कहा कि करने में भी मेरे मनसे तो जरा भी .. मुश्केली नहीं है। . वहां तो पत्नियोंने कहा कि करके बताओ तो हम माने वस! एसे निमित्त की जरूरत थी।. . ... ...... :
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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