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व्याख्यान सोलहवाँ
- भद्रामाता अपने पुत्रको खूब समझाने लगी। फिर भी शालिभद्रजी अपने निर्णय में अडिग रहे इस वात की खवर उनकी बत्तीस स्त्रियोंको और दासदासियों को होते . - ही वे सब अनेक रीत से शालिभद्रजी की सेवामें तल्लीन बन गई जरा भी प्रमाद किये विना इशारे से काम करती हो गई । अगर भूले: चूके प्रियतम को दुख होगा तो चले जायेंगे। इस कारण से उनको खुश करने में खूब सावधान बन गई। . थोड़े दिन तक विचार करने के बाद शालिभद्र ने एक योजना निश्चित की ये योजना जाहिर होते ही सबके हृदय में भारे वेदना. उद्भवी । यह योजना छोड़ा देने के लिये अनेक प्रयत्न किये अनेक युक्तियां अजमाई फिर भी शालिभद्रजी. की मक्कमता (दृढ निश्चय) में जरा भी फर्कः नहीं हुआ। योजना एसी वनाई कि क्रम क्रमसे सबका त्याग। - रोज एक पत्नी और एक पलंग का त्याग । वत्तीस दिनमें योजना की पूर्णता हो । तेतीसवें दिन भवन का भी त्याग करके श्रमण भगवान श्री महावीर देव के चरणकमल में जीवन को समर्पण करके सर्व त्याग रूप साधुपने का स्वीकार करना । '. उनकी इस योजना से भवन में वजती संगीत सुधावली अदृश्य हो गई । नये नये गानतान वन्द हो गये। दासदासियों के हँसते चेहरे उदास हो गये।
बत्तीस ही बत्तीस पत्नियों ने रोना शुरू कर दिया। योगी भी चलित हो जायें एसा आक्रन्द भरा सदन सुनाई देने लगा। भद्रामाताः उदास चेहरे से ये सब देखती: रहः गई। . .