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जैनाचार्य श्रीमद् विजय भुवनसूरीश्वरजी महाराज की
राजस्थान में पधरामणी
और अनेकविध शासन प्रभाव के कार्यों द्वारा
जैनशासन की जयपताका व्याख्यान वाचस्पति, पूज्य, आचार्य देव श्री मदविन्य रामचन्द्र - सूरीश्वरजी महाराजा के प्रथम पट्टालंकार प्रवचन प्रभावक जैनाचार्य श्रीमद् विजयभुवन सूरीश्वरजी महाराज साहब अपने विद्वान शिष्य रत्न पूज्य मुनिराज श्री आनंदवन विजयजी म. तथा पू. मुनिराज श्री जिन वन्द्र विजयजी महाराज आदि शिष्य प्रशिष्यादि परिवार के साथ गुजरात से विहार कर के मांडाणी संघ की विक्रम संवत २०२३-की चैत्री ओली के लिये आग्रह पूर्ण विनती का स्वीकार कर के चैत सुदी पंचनी के सुवह मांडाणी पधारने पर संघने उमलका भरा भारी सामैया स्वागत किया।
आज से दशान्हि का महोत्सव का मंगल प्रारंभ हुआ । चैत सुदी ६ की ओली की आराधना में प० भाविक जुडे । नित्य सुबह नव पद पर पू. आ. म. श्री का व्याख्यान, दोपहर को बड़ी पूजा, आंगी भावना चालू हुई।
साथ में श्री गणेशमलजी की तरफ से अट्ठाई महोत्सव अपने पुत्र उत्तमकुमार के स्मरणार्थ हुआ था।
चैत मुदी १३ को भगवान महावीर की जयन्ती बहुत उत्साह से मनाई गई।
चैत सुदी १४ आज के दिवस की राह अनेक गाँव के संघ धार धार के देख रहे थे। क्योंकि सवको एसा होता था की आचार्य श्री के चातुर्मास का लाभ हमको मिलेगा।